आरा/भोजपुर (डॉ दिनेश प्रसाद सिन्हा)24 अगस्त। शुक्रवार को कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर के द्वारा खतरनाक खरपतवार गाजर घास के नियंत्रण के लिए गाजर घास नियंत्रण सप्ताह के अंतर्गत कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित की गई।
इसकी जानकारी देते हुए डॉक्टर प्रवीण कुमार द्विवेदी वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रधान कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर ने जानकारी दी कि यह घास अमेरिका से आयातित गेहूं के माध्यम से अपने देश में पहुंची। आज इस घास ने अपनी जड़े पूरे देश मे जमा ली है ।यह संसार की छठी सबसे खतरनाक घास के रूप में जानी जाती है। इसके संपर्क में आने से कई प्रकार के चर्म रोग तथा इसके पराग से श्वास नलिका में संक्रमण पाया जाता है ।जानवर स्वयं से भी खा लें या चारा मे।दिया जाय तब उनका दूध विषैला हो जाता है।
इसके संपर्क में आने पर जानवरों में कैंसर की समस्या भी देखी गई है। इसके बीज कभी भी सुषुप्ता अवस्था में नहीं जाते हैं एवं पौधे से गिरने के बाद तुरंत उनके बीजों में अंकुरण प्रारंभ हो जाता है। भीषण गर्मी हो अथवा अत्यधिक वर्षा, इनके ऊपर कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता है। पूरे वर्ष यह खेतों में फलती-फूलती रहती है तथा जिन जिन खेतों में इनका फैलाव होता है वहां पर उनके विषैला प्रभाव के कारण सामान्य फसलों के बीजो का अंकुरण प्रभावित हो जाता है। यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं नमी को बहुत तेजी से काम करते हैं जिसके कारण पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है और उत्पादन में कमी आती है लगातार कई वर्षों से सरकार के द्वारा उनके नियंत्रण के लिए 16 से 22 अगस्त के मध्य जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं और इसी कड़ी में कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा भी कार्यक्रमों की श्रृंखला चलाई गई और किसानों के बीच इसके नियंत्रण के लिए जानकारियां दी जा रही है।
फूल आने के पूर्व इन्हें अगर उखाड़ दिया जाए तो इनका आसानी से नियंत्रण हो जाता है परंतु उखाड़ने से पहले हाथ में किसी न किसी प्रकार का साधन प्रयोग करना चाहिए जिससे कि सीधे त्वचा के संपर्क में इसका रस का रिसाव ना हो।
फूल लगने की अवस्था में खाली खेतों में इनका नियंत्रण ग्लाइफोसेट 20 मिलीलीटर अथवा 2 4 डी ईथाइल इस्टर का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से इनका नियंत्रण हो जाएगा।
जिन क्षेत्रों में इनका प्रसार ज्यादा देखा जा रहा है वहां पर एक दूसरी दलहनी घास जिसे चकवड़ या कैसिया कहा जाता है या इसके अतिरिक्त लाल गेंदा का फूल अगर इनके बीजों को हम वहां बिखेर दें तो उनका प्रसार कम होने लगता है और इसका विकास रुक जाता है। यह भी एक सहज तरीका है। जैसे पोलियो को हमने सामाजिक रूप में एक साथ मिलकर नियंत्रण किया इसी प्रकार सार्वजनिक स्थलों पर खासकर के स्कूल कॉलेज सरकारी परिसर या आवासीय कॉलोनी में जहां पर इनको फलने फूलने का ज्यादा अवसर मिलता है ।वहां पर जागरूकता अभियान चलाकर इन्हें नष्ट करना आवश्यक है।पूरे देश में 350 लाख एकड़ जमीन में इनका प्रसार हो चुका है इससे इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है।