RKTV NEWS/अनिल सिंह,10अप्रैल।“द्वंद” शब्द के बारे में बताना चाहूंगा जिसका अर्थ एक तो मानसिक दुविधा, दो विचारों के बीच का तनाव,दो योद्धाओं के बीच की प्रतिस्पर्धा जहां दोनों परस्पर एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते है।अतः द्वंद का अर्थ दो विचारों,व्यक्तियों या पदों के बीच का संघर्ष है जो एक दूसरे पर हावी होने का प्रयत्न करते हैं। मेरी समझ से यह एक प्रकार का डर भी है जो मानव मस्तिष्क की सोच की उलझनों का होता है।वैसे द्वंद हर एक इंसान के मन में उठता है और हर एक इंसान इससे वाकिफ भी होता है द्वंद की स्थिति उहापोह वाली होती है कुछ समझ में नहीं आता क्या करें? क्या न करें?अंदर उठते विचारों के भवर को मनुष्य जब सकारात्मक रूप से समझ नहीं पाता तो नकरात्मक डर हावी हो नकरात्मक निर्णय की क्षमता को मजबूती देता है और परिणाम स्वरूप मनुष्य नकरात्मक कार्य कर बैठता है।इसी उलझनों की कड़ी पर आधारित है “द्वंद” जिसे कवियत्री शालिनी ओझा ने अपने शब्दों से पिरोया है।
द्वंद
जब हम परेशानियों को झेल रहे होते हैं,
तूफान मन के अंदर और बाहर होते हैं,
सही गलत का फैसला,
हम कर नहीं पाते हैं,
उस वक्त, हम अपने आप से ही खेल रहे होते हैं l
किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं,
क्या सही और क्या गलत,?
जब आपकी सोच से परे होते हैं,
आपको कोई कार्य सही,
और दूसरों को गलत लगता है,
तो आपके अंदर और बाहर तूफान खड़ा होता है l
परिस्थितियां भी तूफान लाती हैं,
तबाही और मुश्किलें इनकी साथी है,
क्या करूं और ना करूं,
भीतर तूफ़ान उठता है
मन द्वंद के भवर में,
फंसता चला जाता है
अंदर का उधेड़बुन,
और बाहर का तंज ,
आपका वजूद हिला देता है।
सकारात्मक सोच और दृढ़ निश्चय से,
आप इस परिस्थिति से पार पा जाएंगे,
द्वंद के भंवर से आप निकल जाएंगे,
दो हाथ दूरी पर खड़ी है खुशी
आप उससे दौड़कर लिपट जाएंगे,
झूम उठेगी जिंदगी,
विरानी जिंदगी में गुल खिल जाएंगे।