RKTV NEWS/ज्योतिषाचार्य संतोष पाठक,23 मार्च।मन की एकाग्रता के लिए रात की साधना का भी अपना एक बड़ा महत्त्व है, क्योंकि रात में प्रकृति शांत होती है। दिन में सूर्य की किरणें और अन्य कोलाहल के कारण ब्रह्मांडीय तरंगों में रुकावट बनी रहती है और ध्यान नहीं लग पाता। इसी कारण शिवरात्रि, नवरात्र, होली, दीपावली आदि पर्वों पर रात में साधना की जाती है।
इस दौरान ग्रहों के अद्भुत योग के कारण ब्रह्मांड दिव्य ऊर्जाओं से भर जाता है। इन ऊर्जाओं को अपने शरीर में अनुभव करने के लिए, नवरात्र में यज्ञ-हवन, भजन, पूजन, मंत्र-जाप, ध्यान, त्राटक आदि साधनाएं की जाती हैं। इसके लिए साधक कमर-गर्दन सीधा कर, आंख बंदकर बैठ जाते हैं। रीढ़ को सीधा करके बैठने से हमारी तरफ ब्रह्मांडीय ऊर्जा आकर्षित होती है। अब साधक शक्ति मंत्रों का जाप करता है, जिससे रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में सुषुम्ना नाड़ी के भीतर ऊर्जा के अलग-अलग अनुभव होने लगते हैं। इसे कुंडलिनी जागरण कहते हैं। हर रात यह शक्ति ऊपर के चक्र को जगाने लगती है और अंतिम रात को शक्ति पूरी तरह जाग कर व्यक्ति को मुक्त भाव में ले आती है। कुंडलिनी जागरण ही हमारे भीतर देवी जागरण कहलाता है।
अतः साधक को नवरात्र की पावन रात्रि में कुछ समय के लिए एकांत में रीड की हड्डी को सीधा रखते हुए आसन लगाकर बैठना चाहिए और अपने इष्ट का ध्यान करते हुए नाम जप, मंत्र जप इत्यादि करना चाहिए।
लेकिन कोई भी साधना का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब साधक आचार-विचार, आहार-विहार, इंद्रियों का संयम आदि पवित्र और सात्विक रखें।।
