आरा/भोजपुर (डॉ दिनेश प्रसाद सिन्हा)31 जुलाई।आज 31जुलाई को श्रीसनातन शक्तिपीठ संस्थानम् तथा सनातन-सुरसरि सेवा न्यास द्वारा आयोजित सप्तदिवसीय श्रीशिव पुराण कथा के चौथे दिन प्रवचन करते हुए आचार्य डॉ भारतभूषण जी महाराज ने कहा कि तारकासुर के तीनों पुत्रों ने जितेन्द्रियता,संयम और शिव भक्ति को अपने जीवन का आधार बनाकर तपस्या की थी।लोकपितामह श्रीब्रह्माजी द्वारा प्राप्त वरदान के बल पर मयासुर द्वारा निर्मित तीन पुरों जो क्रमशः स्वर्ण,रजत और लौह मय थे, में बिहार व पूरी पृथ्वी पर विचरण करते थे। अरिहन् नामक मायावी संन्यासी ने अपने अनर्गल उपदेशों से उन्हें शिव भक्ति और वैदिक धर्म से विमुख कर दिया।जब उन त्रिपुरासुरों के नगरों के सभी स्त्री-पुरुष धर्म और भक्ति से च्युत हो गये तब भगवान शिव ने उन त्रिपुरासुरों का नाश कर दिया। उनमें जो असुर त्राहि-त्राहि करते हुए भगवान शिव की शरण में आए उनकी रक्षा हुई। आचार्य ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में धर्म का लोप न हो यह हमारा दायित्व है। प्रत्येक व्यक्ति को वैदिक वर्णाश्रम सदाचार धर्म का ज्ञान और पालन अवश्य करना चाहिए। आचार्य ने धर्म और भक्ति के प्रचार-प्रसार के लिए ब्राह्मणों का विशेष दायित्व बतलाते हुए कहा कि उनमें त्याग, तपस्या, सक्रियता तथा स्वाध्यायपरायणता का बल होगा तब विधर्मियों के दुष्चक्र से वे समाज को दिशाहीन होने से बचा सकेंगे।