RKTV NEWS/अनिल सिंह,18 अप्रैल।विवादों से भरे किन्नर शब्द का संबोधन अब ट्रांसजेंडर के रूप में किया जाने लगा है,ये तो शब्द है जो हमारे संबोधन में आसानी से परिवर्तित किये जा सकते है लेकिन इसके विपरित इनकी आंतरिक पीड़ा ,मन के अंदर चल रहे द्वंद को परिवर्तित करना हमारे बस में नहीं।जिस समुदाय से खास मौकों पर आशीर्वाद और दुआओं की कामनाएं हमारा समाज करता है उसके बाद इन्हे समाज से नगण्य माना जाता है। अपनी दुआओं से लोगो को फलीभूत करने वाले इस समुदाय की आंतरिक, भावनाओं और समाज के नजरिए को कवियत्री शालिनी ओझा ने अपनी रचना दुखित मन के माध्यम से प्रदर्शित की है।
दुखित मन
एक नया तन लेकर
तुम धरा पर आ गए
लाख योनियों में भटक कर
तुम मनुज तन पा गए।
परमपिता परमात्मा के
तुम भी एक संतान हो
नर हो या हो तुम नारी
इससे अनजान हो।
खुद दुखी रहते हो
मंगल कामना करते हो
दूसरों को तुम दुआएं
देते ही रहते हो।
मृत्यु लोक नरक सम आपके लिए
परिवार भी मुंह फेर लेता संग साथ के लिए
आपका समाज अलग होता
सभ्य कथित समाज से।
मौत का शोक सब मनाते
बस आप लोगों को छोड़कर
मृत्यु पर खुश हो जाते है
आपके समाज के सब।
देख ना ले कोई मरे को
यही कामना आप कर
आधी रात दफनाते हैं शव
जूता चप्पल मार कर।
इस जन्म दिया है भगवन
यह हमारा नरक सा जीवन
अगले जन्म ना दे देना
आप हमें ये अधूरा तन।