RKTV NEWS/पटना (बिहार) 01 जुलाई। जब शरीर मन के अनुसार काम नहीं करता है तो जीवन व्यर्थ लगने लगता है…उक्त शब्दों के साथ अपनी जीवन के संस्मरणों को साझा करते हुए सांसद और मंत्री रहे शिवानंद तिवारी ने अपने जीवन के संस्मरण की व्याख्या करते हुए आगे बढ़ते हुए लिखा है की हमारे पुरखों ने कहा है कि शरीर रथ है और मन उसका सारथी.
मैं उसी दशा में पहुँच चुका हूँ. वैसे अस्सी पार कर चुका हूँ. कम लंबी नहीं है यह ज़िंदगी. मेरे जीवन में इतने रंग रहे हैं अगर उनको अलग अलग देखा जाए तो अविश्वसनीय लगते हैं.
सोचा था कभी अपनी कहानी लिखूँगा. लेकिन जीवन की आपाधापी में समय निकल गया. कुछ मित्रों ने कोशिश की. लेकिन वह भी आधी अधूरी.
दरअसल कहानी उन्हीं की लिखी जाती है जिनका बाज़ार भाव हो. बाज़ार भाव तो सत्ता नशीनों का होता है. ऐसा नहीं है कि उनके जीवन की कहानी नहीं लिखी जानी चाहिए. सत्ता के सहारे ऐसे लोगों ने अपने समय को प्रभावित किया है. सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ढंग से प्रभावित किया है. लेकिन उनके जीवन की नकारात्मकता ने समाज को कितना नुक़सान पहुँचाया है यह दर्ज नहीं हो पाता है.
मेरा जीवन बहुतों को अविश्वसनीय लगेगा. कई रंग हैं मेरे जीवन के. दादागिरी है. कोई सामने नहीं था उन दिनों. पटना ही नहीं राँची और आरा भी. मुन्ना पहलवान कहते हैं कि उस क्षितिज पर मैं आँधी-तूफ़ान की तरह प्रकट हुआ. अपने उस जीवन का आभास मैंने प्रभात खबर में दर्ज कराया है. बाबूजी के जन्म दिन पर. लोगों ने उसे पसंद भी किया था.
जीवन में मुख्य तौर पर मैं राजनीतिक कार्यकर्ता रहा हूँ. सामाजिक न्याय और धर्म निरपेक्षता मेरी राजनीति की आधार भूमि रही है. इस भूमि से कभी विचलन नहीं हुआ. इसका एक बहुत कमजोर पक्ष भी है. राजनीति में ताक़त उन्हीं की मानी जाती है जिनके पीछे उनकी जाति मज़बूती के साथ खड़ी रहती है. या उनकी जो अपनी राजनीति के सहारे एक सामाजिक समीकरण का निर्माण करते हैं. लेकिन दोनों के लिए जाति के हिसाब से पिछड़ा होना लाज़मी है.
चुनाव के दरम्यान भी अपनी वैचारिक मान्यताओं को मैंने कभी छुपाया नहीं. इसकी वजह से वोट की ताक़त मेरी कभी नहीं बन पाई. इसलिए दूध की मक्खी की तरह मुझे निकाल फेंकने में मेरे साथियों ने कभी संकोच नहीं किया. ऐसा नहीं है कि मैं बिलकुल निर्दोष रहा होऊँ. मेरे स्वभाव में दबंगई है. बेपरवाही है. धीरता की कमी है. सोचता हूँ कि अपने इस स्वभाव के चलते मेरा तो नुक़सान हुआ ही, मेरी राजनीति को भी नुक़सान पहुँचा.
अब चाहे जो हो ! बात तो बीत गई. रथ बेलगाम हो चुका है. अब तो इतनी ही इच्छा है कि कम से कम तकलीफ़ में दुनिया से निकल जाऊँ.