RKTV NEWS/शालिनी ओझा, 01अप्रैल। दांपत्य जीवन की उलझनों की शाब्दिक भावनात्मक रचना कवियत्री शालिनी ओझा की कलम से…..
मै अख़बार होती
काश मैं अखबार होती
ना फिर मै बेजार होती
सुबह सवेरे ही तुमको
मेरी भी दरकार होती।
काश मैं अखबार होती…
जिसे देखते बड़े ध्यान से
नजरे ना हटा पाते
चाहे दुनिया इधर उधर हो जाए
संग तेरे अभिसार होती।
काश में अखबार होती।
जाड़ा गर्मी या बरसात
बेकल रहते दिन हो या रात
जब तलक आऊ ना मैं हाथ
तुम्हारी ये बेचैनी स्वीकार करती।
काश मैं अखबार होती..
चुस्कियां लेते चाय की
पढ़ते जबकि तुम मुझे
भीग के बारिश में धुंधली पड़ जाती
यही मै प्रतिकार करती।
काश मैं अखबार होती………✍️