RKTV NEWS/संजय सिंह,30 मार्च। अष्टमी का जो पूजन वह प्रायः सभी घरों में होता है।
हर गांव के पूर्व दिशा में काली माता का मंदिर होता है उस मंदिर में सात देवियों की पूजा होती है उसी देवी में से एक शीतला माता होती है।विशेष करके इसमें शीतला माता की ही पूजा होती है जो कि निशा पूजा (रात्रि जागरण ) कहलाती है।हिंदू धर्म में हर माह कोई न कोई प्रमुख व्रत-त्योहार आता है और हर एक व्रत-त्योहार का विशेष महत्व होता है. चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाता है।शीतला मां का स्वरूप अत्यंत ही शीतल बताया जाता है और इनका स्वरूप रोगों को हरने वाला है. इनका वाहन गधा है. इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं. शीतला सप्तमी को बसोड़ा के नाम से भी प्रचलित है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भोजन पकाने के लिए आग नहीं जलाई जाती. बल्कि महिलाएं व्रत के एक दिन पहले ही भोजन पका लेती हैं और बसोड़ा वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी बासी भोजन का सेवन करते हैं. माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बीमारियों से बचाती हैं. मान्यता है, शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती और अगर हो भी जाए तो उससे जल्द छुटकारा मिलता है।