आरा/भोजपुर ( डॉ दिनेश प्रसाद सिन्हा)03 नवंबर ।गोवर्धन पूजा के अवसर पर भारत के प्रसिद्ध साधक तपस्वी संत पू.जीयर स्वामी जी के कृपा पात्र ब्रह्मपुरपीठाधीश्वर ज.गु.रा.विद्या वाचस्पति आचार्य( डाँ)धर्मेन्द्र जी महाराज ने कहा कि श्रीकृष्ण की सभी लीलाओं का अपना अपना हेतु है,महत्व है,पर गोवर्द्धन पूजन लीला रहस्यमयी,रसमयी, ऐश्वर्यशाली, इन्द्र का मान मर्दन, प्रकृति पूजन, पर्यावरण रक्षण से संपूटित है। यह लीला यह सिद्ध करती है कि यदि इन्द्र का भी प्रकौप हो तो सत्य संकल्प व सामूहिकता के साथ सामना किया जा सकता है। स्त्री पुरूष,अबाल बृद्ध के समेकित सहयोग से विपत्ति के पहाड़ को भी उठाया जासकता है। आचार्य जी ने यह भी बतलाया कि परम्पराओं की तुलना मे विवेक और विज्ञान की प्रथमिकता देने की कथा है गोवर्धन पूजन। आचार्य जी ने भी कहा कि आखिर यह गोवर्धन पर्वत है कौन?इसके उत्तर मे कहा कि यह पर्वत सामान्य नहीं, वरन हिमालय का खंड है,कथा ऐसी है कि जबत्रेता मे सुतू बांध बनाया जारहा था ,उस समय हनुमान जी हिमालय सेसेतुबन्ध पूरा करने के लिए इस पर्वत खंड को लेजारहे थे ,उसी समय सूचना मिली,निर्माण पूर्ण होगया ।बस हनुमान जी ने वही पर्वत को रख दिया।वह हिमालय का खंड गोवर्धन रोने लगा यह कह कर कि हे हनुमान जी आपनू कहा था कि तुम राजी के काम आओगे, अब हमारा क्या होगा?,घर का रहा न घाट का।हनुमान जी यह वृत्तांत श्रीराम जी से सुनाया, श्रीराम जी कहा हे हनुमान तेरी बात वृथा नहीं जायेगी।गोवर्धन से कह दो उसकी सेवा स्वीकृति है।जब द्वापर मे मै आऊँगा तो उसे दर्शन ही नहीं दूंगा, वरन जैसे मेरी पूजा होती है वैसे ही उसकी भी पूजा होगी, कली में व कलीयुगी जीवों की मनोकामना पूरा करने समर्थ होगा, उसके साथ मेरा नाम जुट जायेगा, मेरे साथ उसका नाम जुट जाएगा लोग कहेंगे गोवर्धन धारी,गिरीवर धारी…रहस्यमयी गोवर्द्धन धारण व पूजन की कथा से श्रोता गद्गद होते रहे,भोजपुरी कै पदो से कथा मनोहारी और होती रही.. गौशाला प्रबंधक सचीन बाढ़ ई,संदेश कुमार, धुरंधर राजपूत, रमेशचंद कुलकर्णी, सजील पाटिल, रासबिहारी पटीदार का रहा।