रांची/झारखंड (डॉ अजय ओझा, वरिष्ठ पत्रकार)15 नवंबर। 15 नवंबर, 2000 को तत्कालीन बंगाल के छोटानागपुर क्षेत्र के महान आदिवासी वीर बिरसा मुंडा के जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने बिहार राज्य के दक्षिणी जंगली एवं पठारी भूभाग को अलग कर भारत के 28वें राज्य “झारखंड” की स्थापना की थी। संसद द्वारा बिहार पुनर्गठन अधिनियम पारित होने के बाद, 2000 में बिहार के दक्षिणी भाग से अलग करके झारखंड का गठन किया गया। झारखंड राज्य में मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार और संथाल परगना के जंगलों को शामिल किया गया है।
झारखंड राज्य की स्थापना का उद्देश्य राज्य के वंचितों की आवाज को महत्व देने और सभी क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देना है।
झारखंड ने सामाजिक-आर्थिक विकास से लेकर बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य देखभाल विकास तक बेहतरीन उपलब्धि हासिल की है।
झारखंड स्थापना दिवस एक ऐतिहासिक दिन है जब राज्य का प्रत्येक नागरिक यहाँ की संस्कृति और परंपराओं का उत्सव मनाता है।
झारखंड को पूर्ण राज्य का दर्जा यहां के निवासियों द्वारा संचालित एक लंबे संघर्ष का परिणाम था। दरअसल झारखंड के लोगों को स्वतंत्रता के बाद भी तुलनात्मक रूप से बहुत कम सामाजिक आर्थिक लाभ मिला। जिससे बिहार प्रशासन के प्रति स्थानीय लोगों में काफी असंतोष पैदा हुआ। इस क्षेत्र में अलग राज्य की मांग ब्रिटिश शासन के दौरान ही आरंभ हो गई थी। सर्वप्रथम अलग राज्य के दर्जे की माँग 1912 में शुरू हुई, जब हज़ारीबाग़ के सेंट कोलंबिया कॉलेज के एक छात्र ने इसका सुझाव दिया।
फिर, 1928 में, क्रिश्चियन ट्राइबल्स एसोसिएशन की उन्नति समाज राजनीतिक शाखा ने पूर्वी भारत में एक आदिवासी राज्य का प्रस्ताव रखा, और साइमन समिति को एक ज्ञापन सौंपा गया।
सुप्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में झारखंड पार्टी ने 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग को एक अलग झारखंड राज्य का प्रस्ताव दिया।
1980 के दशक में बिहार से आज़ादी के लिए अभियान चलाने वाले आदिवासी समूह अपनी मांगों को लेकर और अधिक हिंसक हो गए।
1990 के दशक में अलगाववादी आंदोलन गैर-आदिवासी आबादी तक फैल गया। जिससे अंततः एक नए राज्य का गठन हुआ।
1998 में, तत्कालीन केंद्र सरकार ने झारखंड की स्थापना के लिए बिहार विधान सभा में विधेयक लाने का फैसला किया। जिसका राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने भारी विरोध किया और घोषणा की कि अलग झारखंड राज्य उनकी लाश पर बनेगा। लेकिन अंततः, उस वर्ष संसद के मानसून सत्र में, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन ने बिहार संगठन विधेयक को मंजूरी दे दी जिससे अलग झारखंड राज्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया।
बिहार से झारखंड अलग होने के बाद जनमानस और मीडिया में खूब प्रचारित हुआ कि अब बिहार में मात्र “लालू, आलू और बालू” बचा रह गया। भोजपुरी गीतों में लोकगायकों ने गाना शुरू किया किया – ” अलगा भइल झारखंड – अब खइह शक्करकंद !” दरअसल झारखंड राज्य प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें कोयला (भारत का 32%), लोहा, तांबा (भारत का 25%), अभ्रक, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, सोना, चांदी, ग्रेफाइट, मैग्नेटाइट, डोलोमाइट फायरक्ले, क्वार्ट्ज, फेल्डस्पार इत्यादि खनिज पाये जाते हैं।
राज्य का 29% से अधिक भाग वनों और लकड़ियों से ढका हुआ है, जो भारत में सबसे अधिक वन प्रतिशत वाले राज्यों में से एक है।
राज्यक्षेत्र अभी भी अधिकांशतः वनों से आच्छादित है। जो एशियाई हाथियों और बाघों इत्यादि का प्राकृतिक घर है।
झारखंड में तीन अलग-अलग मौसम पाये जाते हैं। साल का सबसे आनंददायक समय ठंडे महीनों के दौरान होता है, जो नवंबर से फरवरी तक चलता है।
झूमर, अग्नि, संथाल और फगुआ राज्य के कुछ लोकप्रिय लोक नृत्य हैं। झारखंड का शाब्दिक अर्थ है “जंगलों की भूमि।”
झारखंड में 24 जिले हैं जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 79,716 वर्ग किलोमीटर है, जो क्षेत्रफल की दृष्टि से यह 15वां सबसे बड़ा राज्य है।
आज झारखंड बने 23 साल हो गया लेकिन जिस उम्मीद से झारखंड को अलग कर वृहद विकास की आशा की गई थी वह पूरी नहीं हुई। दुर्भाग्य से झारखंड बनने के बाद राज्य लूटखण्ड में तब्दील हो गया और स्थानीय निवासियों की उम्मीद धूल धूसरित हो गयी। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों और जंगली जड़ीबूटियों से भरपूर राज्य में विकास की अपार संभावनाएं हैं जिसे सशक्त नेतृत्व द्वारा अभी भी धरातल पर उतारा जा सकता है। 23 साल का नवयुवा झारखंड उसी सशक्त नेतृत्व की तलाश में है…